मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

हाँ ऐसा पहली बार हुआ है!!!!!

हर रोज सपने में कोई,
मुस्कुराते हुए आने लगी है,
हर पल उसकी प्यारी तस्वीर,
आँखों के सामने छाने लगी है,
हाँ ऐसा पहली बार हुआ है,
जब भी उठाता हूँ कलम,
बस उसको ही लिखने लगी है,
रात की खामोशी में अकसर,
वो मुझसे बातें करने लगी है,
हाँ ऐसा पहली बार हुआ है,
छिन लिया उसने मेरा करार,
दिल में बैचेनी सी छाने लगी है,
एक उलझी हुई उसकी तस्वीर,
मुझे तंग करने लगी है,
हाँ ऐसा पहली बार हुआ है,
सो जाता हूँ जब गहरी नींद में,
उसकी प्यारी आवाज जगाने लगी है,
सोचता हूँ जब भी उसके बारे में,
होठों पे एक मीठी मुस्कान आने लगी है,
हाँ ऐसा पहली बार हुआ है,

मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

माँ तेरी याद आती है

अभी रात के साढ़े आठ बजे हैं , और मैं ये कविता लिखने बैठा हूँ, वैसे तो माँ को याद करने के लिए कोई खास दिन की ज़रूरत नहीं होती है, माँ हर पल दिल में होती है । फिर भी आज जब घर से बहुत दूर हूँ, माँ को देखे बहुत दिन हो गया, तब, बहुत जी करता है की बस सब कुछ छोड़ कर माँ के पास जाऊं और उनके गोद में सर रखकर सो जाऊं,,, माँ के बारे में कुछ भी लिखो कम है ... फिर भी बस अपने दिल में कुछ बातें थी जो बाहर आ गयी,,,,,
मैं घर से दूर हूँ,
माँ तेरे दर से दूर हूँ,
तू मेरे पास नहीं,
मैं तेरे साथ नही हूँ,
तेरा अहसास मुझे,
बहुत रुलाती है माँ,
हर घड़ी हर पल,
तू याद आती है माँ,
सवेरा होते ही,
खनकती हैं चूड़ियाँ तेरी,
मेरे कानों में समाती है,
तेरी आवाज प्यारी ,
मुझे लगता है जैसे,
तू यहीं कहीं है,
पर कहाँ है?
नज़र नहीं आती है माँ,
सुबह देर होने पर,
तू मुझे जगाती है माँ,
हर घड़ी हर पल,
तू याद आती है माँ,
आ गया हूँ तेरी आंचल छोड़,
एक अंजान शहर में,
खुशियों की बहार छोड़,
गम के समंदर में,
तेरी वो प्यारी सुरत,
बहुत याद आती है माँ,
हर घड़ी हर पल,
तु बहुत याद आती है माँ,
खो गया हूँ जीवन की मृगतृष्णा में,
ढुंडता फिरता हूँ खुद को,
अजनबीयों की भीड़ में,
नहीं है कोई गलती बताने वाला,
तेरा वो मार्गदर्शन बहुत आता है माँ,
हर घड़ी हर पल,
तु बहुत याद आती है माँ,
तेरी आहट हमेशा महसूस करता हूँ, तेरी चाहत मुझे हरदम सुहाती है,
तेरी डांट कानों को गुदगुदाती है,
तेरी हर बात मुझे जीना सिखाती है,
तेरी कमी मुझे तन्हां कर जाती है,
माँ हर घड़ी हर पल तू याद आती है

बुधवार, 23 नवंबर 2016

मेरी कलम


मेरी कलम चलती हरदम,
न कभी बेवफाई करती,
हर पल मेरा साथ निभाती,
तन्हाई में अकसर,
मुझसे बातें करती,
खो जाता हूँ जब,
शब्दों के अथक गहराई में,
मेरे बिखरे शब्दों को जोड़ती,
होता हूँ उलझन में जब,
आकर मेरे उलझन सुलझाती,
आकर कभी चुपके से,
 मेरे कान में कहती,
मैं ही तो हूँ तेरे जीवन की साथी,
न कभी कहती अपनी गम,
चलती रहती हरदम,
ऐसी ही है मेरी कलम,,,,,

रविवार, 6 नवंबर 2016

कैसे कहूं मेरा भारत महान!


मार दी जाती गर्भ में,
दुनिया देखने से पहले,
एक नन्ही सी जान,
कैसे कहूं तुम ही बताओ,
मेरा भारत है महान,
आज भी बेटों की चाह में,
बली दी जाती मासूम परी,
जैसे कोई जानवर बेजुबान,
कैसे कहूं तुम ही बताओ,
मेरा भारत है महान,
चंद पैसों की लालच में,
ले लेती एक बहु की जान,
दहेज रूपी दानव ने,
इंसान को बना दिया हैवान,
कैसे कहूं तुम ही बताओ,
मेरा भारत है महान,
आज भी नारी करती संघर्ष,
पाने अपना हक और सम्मान,
होती जहां पर निर्भया जैसी,
हर रोज कोई नई कांड,
कैसे कहूं तुम ही बताओ,
मेरा भारत है महान,
आज भी जिस देश में ,
नारी पर अत्याचार को,
पुरुष मानते अपनी शान,
कैसे कहूं तुम ही बताओ,
मेरा भारत है महान,
आओ मिलकर उठाएँ प्रण,
न करेंगे न करने देंगे,
किसी नारी का दमन,
तभी गर्व से कहेंगे,
हाँ मेरा भारत है महान,

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

सभ्य समाज!!!???????


मार दी जाती गर्भ में,
एक फूल सी कोमल परी को,
बेटे की अभिलाषा में,
निर्दयी बाप की क्रूरता देखो,
बना दिया है व्यापार,
शादी के रस्म रिवाजों को ,
खून चुस लेती है दहेज ,
इंसान की इंसानियत देखो,
पैसों की लाचारी में
बांधी जाती एक बेटी,
अमेल विवाह के बंधन में,
एक गरीब बाप की बेबसी देखो,
दहेज की धधकती ज्वाला में,
जला दी जाती एक अबला नारी,
धन-दौलत की चाहत में,
इंसान की हैवानियत देखो,
छेड़ी जाती सारेआम बजार में,
किसी की बहन-बेटी को,
झुक जाती है शर्म से आँखें,
हैवानों की मानसिकता देखो,
बांध देती पैरों में बेड़ियां,
लग जाती है बंदिशें हजार,
समाज के इन मठाधीशों का,
दोहरा चरित्र देखो,,,,
घर पर करते अपनों पर अत्याचार,
बाहर दूसरों की बहन बेटी पर बलात्कार,
कैसे कहें हम इन्हें सभ्य,
इन असुरों की असुरता देखो,,,,,

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016

सफलता अब अपनी मुट्ठी में!!!!


जीवन में आगे बढ़ने हेतु व्यक्ति निरंतर प्रयासरत रहता है, सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता,,,,,, इसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को निरंतर मेहनत करनी ही होती है, किसी मुकाम पर पहुंचने के लिए व्यक्ति को अपनी मंजिल का भी पता होना चाहिए, इसके बगैर किया गया प्रयास व्यक्ति को असफलता की ओर ही ले जाता है,,,,,,
जीवन में सफल होने के कुछ टिप्स:-
1)एकाग्रता बढ़ाएं - सफल होने के लिए एकाग्रता का होना जरूरी है, एकाग्रता यानी किसी भी एक ही विषय-विशेष पर पूर्ण ध्यान दिया जाना किसी व्यक्ति को तब तक सफलता नहीं मिल सकती, जब तक कि वह एकाग्र न हो बिना रुचि के एकाग्र होना काफी मुश्किल है,,,प्रचीन काल में ॠषी मुनी अपने एकाग्रचित्त के कारण ही अपने ईश को प्राप्त करते थे,,,,यदि आपको सफल होना है तो आपको बगुला बनना पड़ेगा,,,याद रहे अवसर मछली की तरह होता है आपके पास एक बार ही आती है,,,,,,बस आपको बगुला की तरह एकाग्र रहकर उसे पकड़ना है,,,,डां• ऐ•पी•जे• अब्दुल कलाम ने एक बहुत बड़ी बात कही"आप का दिमाग एक समय में एक ही चीज़ के बारे में सोचता है" अगर आप एक समय में एक से अधिक चीजों के बारे में सोचते है तो आप अपनी एकाग्रता खो देते है,,,,और परिणाम असफलता,,,,,,,
 2)समय का महत्व समझें -
"समय"  ये एक शब्द नहीं बल्कि पुरा का पुरा एक सफलता निर्धारक सुचक है,,, सफलता प्राप्ति में समय का काफी महत्व है जिसने समय के महत्व को जान लिया उसने सब कुछ पा लिया,,,, अत: किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु समय-प्रबंधन  जरूर करें,,,, किसी विद्वान ने ठीक ही कहा है कि 'मैंने समय को खोया, समय ने मुझे',,,,, इसी से पता चलता है कि समय कितना कीमती है, यह भी कहा गया है कि समय ही सोना है अत: समय को बरबाद न करें,,,,आप यदि समय को बरबाद करोगे तो एक दिन समय आपको बरबाद कर देगा,,,
समय अमूल्य धन है ये अनमोल है,,,,यह आप पर निर्भर करता है कि आप समय का उपयोग किस तरह करते है यदि आपने समय का सही उपयोग करना सीख लिया तो समझो आपने ये दुनिया अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया,,,,,,समय आपके अनुकूल परिस्थितियों
का इंतजार नहीं करती ये निरंतर चलती रहती है,,,इसलिए विपरीत परिस्थितियों में भी समय के साथ सामंजस्य बनाने की कोशिश करें,,,,वरना समय आपका इंतजार नहीं करेगा वो निकल जायेगा,,,,,
3)अपनी शक्ति-सामर्थ्य का पता करें - अपनी शक्ति-सामर्थ्य का हमें पता होना चाहिए, हमेशा लक्ष्य ऐसा चुनें, जो अपनी शक्ति- सामर्थ्य में हो, कभी भी ऐसा लक्ष्य चुनने की गलती नहीं करें, जो स्वयं की शक्ति-सामर्थ्य से बाहर हो,,,,, उदाहरण के लिए किसी की रुचि कला विषय लेकर दर्शन शास्त्र में सफलता प्राप्त करने की हो तो उसे जबरदस्ती इंजीनियरिंग या डॉक्टरी के लिए प्रयास नहीं करना चाहिए नहीं तो असफलता ही हाथ लगेगी,,,,,हमें किसी के दबाव या प्रभाव से कोई भी काम नहीं करना चाहिए इसमें असफल होने की संभावना अधिक रहती है,,,अगर आप सफल हो भी गए,,तो भी आप कभी खुश नहीं रह पायेगे,,,,,
4)कार्य करते रहें- व्यक्ति को सफलता प्राप्ति हेतु कर्म करते रहना चाहिए, क्योंकि इसी में क्रिया और उसका परिणाम दोनों शामिल हैं,,, स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है कि 'कर्म मानव स्वतंत्रता की शाश्वत घोषणा है हमारे विचार, शब्द और कर्म वे धागे हैं जिनसे हम अपने चारों ओर एक जाल बुन लेते हैं। हमें अपना कार्य सही व श्रेष्ठ दिशा में ही करना चाहिए सही का सही और गलत दिशा का परिणाम भी गलत ही होता है,,,,
5)आशावादी बने रहें- व्यक्ति को हमेशा आशावादी ही बने रहना चाहिए, नकारात्मक विचार कभी भी मन में न लाएं,,, नकारात्मक विचारों से आत्मविश्वास कम होता है अत: हमेशा आशावादी दृष्टिकोण ही अपनाएं इस बारे में काफी पुरानी एक कहावत भी है कि 'मन जीते जीत है और मन के हारे हार' अत: सकारात्मक चिंतन श्रेष्ठ रहेगा,
स्वामी विवेकानन्द जी कहा करते थे"जैसा हम सोचते है हमारा मस्तिष्क भी हमें उसी दिशा में ले जाता है" अगर आप नकारात्मक सोचते है तो बहुत हद तक आप असफल हो सकते है,,,,इसलिए हमेशा सकारात्मक सोच रखें,,और आशावादी बने रहे,,, थामस एडिसन ने बिजली  बल्ब बनाते बनाते बहुत बार असफलता साथ लगी लेकिन उन्होंने आशा नहीं छोड़ी,,,और परिणाम आज हम सबके सामने है,,,,दरसल हममें से बहुत कोई बार बार असफल होने पर आशा विहीन हो जाते है लेकिन हम सब को ये नहीं पता होता की हम अपने मंजिल के बहुत करीब होते है
,,,,और वो काम हम छोड़ देते है परिणाम असफलता,,,, 
6)जी-जान से भिड़ जाएं - एक बार मंजिल तय हो जाने के बाद आप जी-जान से सफलता प्राप्ति हेतु भिड़ जाएं, इसमें कोताही बरतना आपके लिए उचित नहीं कहा जाएगा,,, अपने इरादों पर दृढ़ रहें व डिगें नहीं,,, कई बार इसमें असफलता के अवसर भी आ सकते हैं किंतु आप अपने दृढ़ संकल्प से उस पर पार पा लेंगे, आप ऐसा ही विश्वास बनाए रखें,,,,
7)ईश्वर से प्रार्थना भी करें- ईश्वर से प्रार्थना का भी अपना महत्व है ईश प्रार्थना से हृदय व मन-मस्तिष्क के तार भी झंकृत होते हैं। अनुसंधानों में भी पाया गया है कि नियमित मंदिर जाने तथा भगवान की प्रार्थना करने वाले हमेशा आशावादी बने रहते हैं, क्योंकि उनके मन में यह भाव रहता है कि 'ईश्वर मेरे साथ है' यह भाव सकारात्मकता की ओर ले जाता है,,,,,,,

रविवार, 16 अक्तूबर 2016

सफलता का राज!

दोस्तों सफल होना कौन नहीं चाहता??,,सभी का सपना होता है कि वह अपने प्रोफेसन में सफल हो ,,लेकिन बहुत कम ही लोग होते है जो सफल होते है,,,,अधिकतर को असफलता हाथ लगती है और वे जिंदगी से निराश हो जाते है,,,लेकिन वे कभी एनालाइज नहीं करते कि वह असफल क्यों हुआ,,,बस किस्मत को कोस कर रह जाते है,,,आइए कुछ इन्हीं कारणों को एनालाइज करते है,,,,
दोस्तों आज जब हम अपने चारों ओर के लोगों के व्यवहार को देखता हूँ तो हैरान के साथ साथ गुस्सा भी आता है,,,आज जब आप कुछ काम करने जाओ तो लोग आपको हतोत्साहीत ही करते है,,,,, ये काम तुझसे नहीं होगा,,,,फलना आदमी नहीं कर सका तो तु क्या कर लेगा,,,,,तरह तरह के बाते बनाने लगते है,,,वे हमारे दिमाग को divert कर देते है और हम अपना 100% नहीं दे पाते है,,,आइए इसको एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं,,,
एक बार दो दोस्त जिनमें एक का उम्र 8 तथा दुसरा का उम्र 14 साल था एक सुनसान जंगल को पार कर रहा था दुर दुर तक कोई इंसान नहीं था,,,,,, जाते जाते दुसरा दोस्त एक खाई में गिर गया,,अब पहला दोस्त को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें क्योंकि दुर दुर तक कोई नहीं था,,,,तो वह जंगल की लताओं से एक रस्सी टाइप का बनाया और अपना सारा शक्ति लगाकर उसे खींचने लगा अंततः वह सफल हुआ,,,,
मन में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इतना छोटा लड़का अपने से बड़े को कैसे बचा लिया???? मित्रों क्योंकि उस के आस पास यह बताने वाला कोई नहीं था कि वह यह काम नहीं कर सकता,,,,
उसका दिमाग भ्रमित नहीं हुआ वह अपनी पूरी ताकत लगा दिया और अंततः सफल हुआ,,उसने समय का इंतजार नहीं किया ,,,,वह जंगल में उपलब्ध संसाधन से ही रस्सी बनया और अपनी सारी ताकत लगा दिया और अंततः वह सफल रहा,,,,
मित्रों हम लोगों के साथ भी सेम यही होता है हम लोग यदि किसी काम में असफल होते है तो इसका बहुत बड़ा कारण हमारे आस पास में मौजूद लोग ही होता है क्योंकि छोटा से हम लोगों के दिमाग में यह कुट कुट कर भर दिया जाता है कि यह काम तुम से नहीं होगा तुम्हारे पास संसाधन की कमी है और हम जब भी उस काम को करने जाते हैं तो न चाहते हुए भी ये सब बातें हमारे दिमाग को divert करती है इस कारण अपनी पूरी क्षमता नहीं लगाते और असफल हो जाते है,,,,,,
मैं आप लोगों के साथ अपनी पर्सनल experience शेयर कर रहा हूँ,,,एक घटना 12th बाद की है,,,
12th बाद मेरे पापा के परम मित्र,,,मुझसे पुछा बेटा आगे क्या करना है,,,मैंने कहा जी रसायन में स्नातक,,,
वे मुझे ऐसे घुरने लगे जैसे मैं कोई एलियन हूँ,,,
उसके बाद उन्होने जो कहा बहुत ही हास्यपद लेकिन समाज का सच उजागर करने वाला,,,अरे बेटा तुम टेक्नेकल क्यों नहीं कर लेते,,,,रैंक भी अच्छा आया है,,,अच्छे कालेज में एडमिशन हो जायेगा,,,,, रसायन विज्ञान तुमसे न हो पायेगा,,,,बहुत मोटी मोटी किताब है,,,दोस्तों अगर उस दिन उनके बात पर हम अमल करते तो आज जहां हूँ,,,,शायद नहीं होता,,,,
मन में सवाल उठता है कि आखिर इस समस्या से बचें कैसे????
बहुत ही आसान जबाव है,,,इन लोगों के सामने बहरा बन जाओ,,,जब आप सुनेगें ही नहीं तो ये नकारात्मक बातें आपके दिमाग में कभी नहीं आयेगा,,,,,
दुसरा कारण है कि हम एक साथ एक ही समय में दो या अधिक काम करना चाहते है और असफल हो जाते है,,,दोस्तों रसायन में एक uncertainty principle है,,,जिसके अनुसार आप एक समय में किसी कण का स्थिति और गति एक साथ ज्ञात नहीं कर सकते,,,,सेम रही principle हमारे साथ भी लागू होता है हम भी एक समय में दो काम नहीं कर सकते,,,,यदि एक काम पर 80% ध्यान देते है,,,तो दुसरा काम 20% और यही 20% हमें सफल होने से रोकती है,,,,हमेशा एक ही काम पर अपना 100% दे,,,फिर आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता,,,,
मित्रों एक कहावत तो आप सबने सुनी होगी"हाथी जाए बजार कुत्ता  हजार" बस यही कहावत इन लोगों के लिए लागू होती है,,,,,
अंत में मित्रों हमेशा याद रखिए हम जैसा सोचते है हमरा दिमाग भी उसी दिशा में ले जाता है ,,,,,इसलिए हमेशा सकारत्मक ही सोच रखें,,,,,और नकारात्मक सोच वाले व्यक्तियों से हमेशा दुरी बनाए रखें,,,,,

रविवार, 2 अक्तूबर 2016

मन करता है!

मन करता है पंछी बनकर,
आसमान में उड़ जाऊँ,
उम्मीदों की पंख फैला कर,
मंजिल अपनी पाऊँ,
मन करता है बादल बनकर,
धरती की प्यास बुझाऊँ,
एक अच्छा इंसान बनकर,
सबके होठों में मुस्कान लाऊँ,
मन करता है सुरज बनकर,
सबको रौशन कर जाऊँ,
घर-घर में शिक्षा का दीप जलाकर,
सबको शिक्षित कर जाऊँ,
मन करता है पुष्प बनकर,
अपनी सुगंध फैलाऊँ,
प्रियतमा की प्रिय बनकर,
जीवन भर साथ निभाऊँ,
मन करता है तारा बनकर,
गगन में चमक बिखेरुं
माँ की लडला बनकर,
उनके सपने पूरे कर जाऊँ,

शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

उलझन

जब भी होता हूँ मैं तन्हा,
सोचता हूँ अकसर,
कौन हूँ मैं? क्या है मेरा अस्तित्व?
तभी विचार आता है मन में,
मैं उस छाया की तरह हूँ,
जो अंधेरे में गायब हो जाता है,
मैं उस पंजरे में बंद परिंदा जैसा हूँ,
जो कैद में रह कर भी,
आसमान में उड़ने की सपना देखता है,
तभी ख्याल आता है मन में,
मैं उस प्यासे पथिक की तरह हूँ,
जो अपनी प्यास बुझाने के लिए,
मृगतृष्णा में उलझ कर रह जाता है,
तभी आती है एक आवाज,
नहीं, तू छाया नहीं तू तो वो अक्स है,
जो अंधेरे में भी जुगनु जैसा चमकता है,
तू बंद पिंजरे का परिंदा नहीं,
तू तो वो बाज है,
जो खुले आसमान में उड़ने का हुनर रखता है,

शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

मेरी मूर्खता!


सोचा लिखूँ माँ पर एक कविता,
समेट लूं चंद शब्दों में माँ को,
कैद कर लूं अपनी डायरी के पन्नों में,
दिखा दूं माँ को भी अपनी विद्वानीता,
तभी मन हंसा मेरी मूर्खता पर,
कैसे समेटागा तु उस माँ को,
अपनी इन चंद शब्दों से,
जो है ममता की निर्झर सरीता,
जिसकी न शुरू न अंत, जो है अनंत,
कैसे करेगा तु महज कुछ लफ्जों में,
उस ममतामयी माँ  की दर्द को बयां,
जो नौ महीने तुझे अपनी गर्भ में पाला,
भुल गया क्या माँ ही तुझे संसार दिखाया,
सारी दर्द सहकर तुझे इंसान बनाया,
रात भर जागकर लोरी सुनाया,
न कर सकेगा तु माँ की ममता को,
महज कुछ लफ्जों में कैद,
क्योंकि माँ की ममता है आजाद परिंदा,
जो स्वच्छंद विचरण करती खुले आसमान पर,
और प्यार बरसती अपनी बच्चों पर,
क्यों वर्णन करने चला है तु माँ को,
मत कर तु इतनी बड़ी भूल,
खो देगा तु अपनी अस्तित्व,
खत्म हो जायेगी तेरी कुल,

बुधवार, 7 सितंबर 2016

सपनें कभी अपने नहीं होते!


सपने खामोशी से टूटते है,
कभी सुनी है कोई आवाज़?
सपने मुरदों सी होती है,
कभी देखी है कोई हलचल?
टुट कर बिखर जाती है सपने,
जब मजबूरी हावी होने लगती है,
हम भी बुने थे कुछ सपने,
कुछ ख्वाब रखे थे पाले,
लेकिन उम्मीदों के बोझ तले,
धीरे धीरे बिखरने लगे सपने,
और मजबूरियां लगने लगी अपने,
हम भी रोज रात को सुनहरी सपने बुनते  है,
खामोश रहकर नई उम्मीदें चुनते है,
लेकिन छोटी छोटी मजबूरियां लगती है रोने,
और बिखर जाती है सपने,
तब ठहर सा जाता है ये लम्हा,
आँखों के सामने अंधेरा लगती है छाने,
लगने लगती है बेकार ये जिंदगी,
जब टुट जाते है सपने,
सपने आखिर सपने होते है,
ये कब अपने होते है,
टुट जाने देते है सपनों को,
और समेट लेते है अपनों को(मजबूरीयों को)

गुरुवार, 1 सितंबर 2016

ऊर्जा संरक्षण


सुनो ध्यान से दुनिया वालों,
अभी समय है न बिगड़ा कुछ,
करके ऊर्जा का संरक्षण  तुम,
आने वाली पीढ़ी को बचा लो।
ऊर्जा है जीवन का आधार,
ऊर्जा की बरबादी करके,
क्यों कर रहे हो तुम,
अपनी ही आने वाली वंश का संहार।
तपती धरती करे पुकार,
मत करो फिजूल खर्चा ऊर्जा की,
ऊर्जा बिन सुना है संसार।
क्या दोगे विरासत में तुम,
कभी इस बात पे किया है गौर,
जब खत्म हो जायेंगे कोयला,
ऊर्जा बिन मचाओगे शोर।
ऊर्जा संरक्षण का न कोई और विकल्प,
ऊर्जा के सही उपयोग से ही,
देश का होगा कायाकल्प।
आओ सब मिलकर प्रण उठाए,
न करेंगे न करने देंगे ऊर्जा की बरबादी,
सुनहरा सुरक्षित भविष्य के लिए,
ऊर्जा का संरक्षण को अपनाएँ।

मंगलवार, 30 अगस्त 2016

सफलता का राज:सकारात्मक सोच


प्रायः लोग अपनी असफलताओं के प्रति स्वयं के उत्तरदायित्व से बचने के लिए तमाम प्रकार के बहानों व कारणों को जिम्मेदार ठहराते हैं,,,,,, वे इस बात को समझने में पूरी तरह विफल हैं कि असली समस्या उनकी अपनी  मनोवृत्ति में है,,,,,,,
सफलता के लिए उचित मनोवृत्ति का होना आवश्यक है, क्योंकि जैसी मनोवृत्ति होगी, वैसा ही व्यवहार होगा, जैसा व्यवहार होगा, वैसे ही कार्य होंगे, जैसे कार्य होंगे, परिणाम भी उसी के अनूकुल होगा,,,, प्रायः लोग अपनी असफलताओं के प्रति स्वयं के उत्तरदायित्व से बचने के लिए तमाम प्रकार के बहानों व कारणों को जिम्मेदार ठहराते हैं वे इस बात को समझने में पूरी तरह से विफल हैं कि असली समस्या उनकी अपनी मनोवृत्ति ही  है, जो हमारे जीवन का निर्माण करती है, इसी के द्वारा हमारी सफलताएं व असफलताएं निर्देशित होती हैं,,,,,
विभिन्न क्षेत्रों के सफल व्यक्तियों के इतिहास  की गहराई से पड़ताल करने पर पता चलता है कि उनकी मनोवृत्ति सभी  कर्त्तव्यों के उत्तरदायित्व को अपने ऊपर  लने की होती है, ऐसे लोग बहानों में विश्वास नहीं करते और न ही अपनी  समस्याओं के लिए दूसरों को दोषी ठहराते हैं, आप किसी भी चीज को सकारात्मक अथवा नकारात्मक दृष्टि से देख सकते हैं, हमारी सोच सभी सफलताओं , समस्त सांसारिक प्राप्तियों, सभी महान खोजों एवं आविष्कारों तथा समस्त उपलब्धियों का मौलिक स्रोत होती है हमारे विचार हमारे  कैरियर  और वास्तव  में हमारे दैनिदिन जीवन के निर्धारक होते हैं, विचार सभी कार्यों के पीछे के मार्ग निर्देशक बल होते, हमारे कार्य अनजाने में हमें सफलता या असफलता की तरफ ले जाते हैं,  विचार मनुष्य को  बना देते हैं या तोड़ देते हैं,,,,,,
महान धर्म गुरुओं द्वारा  ब्रह्मांड, ब्रह्मांडीय मस्तिष्क को सोच द्वारा सृजित किया गया है यह  ब्रह्मांडीय मस्तिक सूचनाओं का महा राजपथ है, जो सभी मानव मस्तिष्कों को एक साथ जोड़ता है हम काफी हद तक दूसरों द्वारा समाचार पत्र, चलचित्र रेडियो और आकस्तिक भेंट मुलाकातों के दौरान एक छोटे से विचार के माध्यम से भी एक अलग ढांचे में ढाल दिए जाते हैं। हमारे  ऊपर  हर समय लगातार विभिन्न डिग्री के विचारों की बमबारी होती रहती है इनमें से कुछ हमारे अंदर की आवाज के साथ मेल खा सकते हैं और महान दृष्टि प्रदान कर सकते हैं सफलता की कला वास्तव में हमारे मस्तिष्क के दक्षातापूर्ण संचालन की एक कला है सफलता हमारे भीतर ही निहित होती है उसे बाहर निकालने के लिए प्रयास की आवश्यकता होती है। यदि हमारे प्रयास सकारात्मक होते हैं, तो हम सफलता की ओर बढ़ जाते हैं और यदि हमारे प्रयास नकारात्मक होते हैं, तो हम सफलता से दूर होते चले जाते हैं हमारे मनोभावों का हमारी जिंदगी में बड़ा महत्त्व होता है हमारे मन के भाव ही हमारे जीवन की दिशा को तय करते हैं हम जीवन में कितना ऊपर जाएंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी मनोवृत्ति किस तरह की है हमारे जीवन का हर एक पक्ष हमारे मन द्वारा ही नियंत्रित होता है। हमारी सफलता- असफलता सब मनोवृत्ति पर निर्भर करती है यदि हम अपने मन को किसी एक विषय पर फोकस कर लें, तो कोई वजह नहीं कि हम अपने लक्ष्य को हासिल न कर सकें कोई भी लक्ष्य हासिल करने के लिए एकाग्रता जरूरी है और इस एकाग्रता में मन अपनी अहम भूमिका निभाता है। जब हम एकाग्र हो गए तो समझो हम सफल हो गए,,,,,,,,
जिस प्रकार यदि किसी उपजाऊ भूमि में फसल न उगाया जाए तो उस भूमि में अनावश्यक घास, फुस,कंटीली झाड़ियां उग  जाती है सेम हमारा
दिमाग भी उपजाऊ भूमि की तरह ही है यदि आप इसमें फसल रूपी सकारात्मक विचार नहीं उगायेगे तो इसमें स्वतः घास झाड़ी रुपी नकारात्मक विचार उगेगा ये आपके उपर निर्भर करता है कि आप क्या उगाना चहते है,,,,,
आपके स्वर्णिम भविष्य की कामना के साथ आपका दोस्त मनोरथ,,,,,,

सोमवार, 29 अगस्त 2016

दहेज, आखिर कब तक!


कई लोग दहेज प्रथा इसलिए मानते चले आ रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि रीत है, हमेशा से चली आ रही है, इसे बदला नहीं जा सकता! आश्चर्य कि बात है कि महात्मा गांधी और जे पी नारायण जैसे लोगों के देश मे आज भी सुधार कि तरफ पहला कदम उठाने वाले लोगो कि कमी है। लड़की वाले दहेज देना अपना नैतिक कर्तव्य समझते हैं, उन्हें अपनी बिटिया को गृहस्थी का सारा सामान और यदि दामाद जी को आवश्यकता है तो नकद राशि भी देनी है ताकि उनकी बिटिया अपने नए जीवन मे प्रवेश करने के बाद सुखी रहे। ऐसी परिस्थितियों मे लड़के वालों को भी लेने से कोई गुरेज नहीं, आखिर लड़की वाले खुद ही तो दे रहे हैं और बिटिया कि खुशी के लिए दे रहे हैं!!
क्या सत्य ही दहेज का सामान देने से बेटी के खुश रहने का आश्वासन मिल जाता है?
क्या यह संभव नहीं कि नए परिवार का रहन-सहन ऐसा हो कि आपकी बेटी को सामंजस्य बैठाने मे असुविधा हो और वो खुश न रह सके?
जहां तक मुझे लगता है, खुशियाँ धन से और भौतिक सुख-संसाधनो से नहीं खरीदी जा सकती, अन्यथा हर अमीर व्यक्ति सदैव खुश रहता, उसे कोई कष्ट न रहता। परंतु क्या सच मे ऐसा होता है? यदि आपने अपनी बेटी के लिए सही जीवनसाथी चुना है तो वो बिना दहेज के, अपनी मेहनत कि कमाई से ही आपकी बेटी को खुश रख सकता है और यदि इंसान ही गलत हो तो उसे आप खुद को गिरवी रख कर भी संतुष्ट नहीं कर सकते! ये तो बात थी उन लोगो कि जो स्वयं अपनी इच्छा से दहेज लेते और देते हैं। ये समाज के उस वर्ग के लोग हैं जिन्हें धन-संपत्ति कि कमी नहीं। हाँ, दान देने कि बात हो तो शायद कमी हो, पर विवाह मे खर्च करने के लिये भरपूर पैसा है। और समाज के ये लोग अन्य माध्यम वर्गीय और निम्न माध्यम वर्गीय परिवार के बेटी के पिता के लिए मुश्किलें खड़ी कर देते हैं। लड़के वालो को दहेज चाहिए और जिस पिता ने अपनी पूरी ज़िंदगी सिर्फ परिवार कि जरूरतों को पूरा करने मे बिता दी, वो अब अलग से बेटी के लिए दहेज कि रकम कहाँ से लाये? तो क्या गरीब परिवार कि बेटियों कि शादियाँ नहीं होंगी? उन्हें इंतज़ार करते रहना होगा, कब कोई बुद्धिजीवी परिवार उन्हें मिले जो दहेज का विरुद्ध हो और उनकी बेटी के गुणों को पहचाने? ज़रूरी नहीं, कि हर माध्यम वर्ग कि परिवार कि लड़की का भाग्य इतना प्रबल हो कि उन्हें ऐसा वर मिले। क्योंकि ऐसे परिवार तो समाज से विलुप्त होते जा रहे हैं।
तो क्या अब लड़कियों को एक ये भी एहसान का बोझ उठा के जीना होगा कि कौन लड़का उसे बिना दहेज के स्वीकारने को तैयार है?
क्या सत्य यह कोई एहसान होगा या हमारे समाज द्वारा बेटी के पैरों मे डाली गयी एक और बेड़ी?

शनिवार, 27 अगस्त 2016

नारी की ऐसी अवहेलना !


हमारे देश में बेटे के मोह के चलते हर साल लाखों बच्चियों की इस दुनिया में आने से पहले ही हत्या कर दी जाती है। लड़कियों की इतनी अवहेलना, इतना तिरस्कार चिंताजनक और अमानवीय है। जिस देश में स्त्री की सेवा, त्याग और ममता की दुहाई दी जाती हो, उसी देश में एक कन्या के आगमन पर पूरे परिवार में मायूसी और शोक छा जाना बहुत बड़ी विडंबना है। लोगों में पुत्र की बढ़ती लालसा और खतरनाक गति से लगातार घटता स्त्री- पुरुष अनुपात समाजशास्त्रियों, जनसंख्या विशेषज्ञों और योजनाकारों के लिए चिंता का विषय बन गया है। यूनिसेफ के अनुसार दस प्रतिशत महिलाएं विश्व जनसंख्या से लुप्त हो चुकी हैं। स्त्रियों के इस विलोपन के पीछे कन्या भ्रूण हत्या ही मुख्य कारण है। भ्रूण हत्या का कारण है कि हमारे समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता और लोगों की संकीर्ण सोच। संकीर्ण मानसिकता और समाज में कायम अंधविश्वास के कारण लोग बेटा-बेटी में भेद करते हैं। प्रचलित रीति-रिवाजों और सामाजिक व्यवस्था के कारण भी बेटा और बेटी के प्रति लोगों की सोच विकृत हुई है। ज्यादातर मां-बाप सोचते हैं कि बेटा तो जीवन पर्यंत उनके साथ रहेगा और बुढ़ापे में उनका सहारा बनेगा।
समाज में वंश परंपरा का पोषक लड़कों को ही माना जाता है। इस पुत्र कामना के चलते ही लोग अपने घर में बेटी के जन्म की कामना नहीं करते। बड़े शहरों के कुछ पढ़े लिखे परिवारों में यह सोच थोड़ी बदली है, लेकिन गांव-देहात और छोटे शहरों में आज भी बेटियों को लेकर पुराना रवैया कायम है।
मदर टेरेसा ने कहा था, 'हम ममता के तोहफे को मिटा नहीं सकते। स्त्री और पुरुष के बीच कुदरती समानता खत्म करने के लिए हिंसक हथकंडे अपनाने से समाज पराभव की ओर बढ़ता है।' नारी मानव शरीर की निर्माता है, फिर भी उसी की अवहेलना की जा रही है। नारी अपने रक्त और मांस के कण-कण से संतान का निर्माण करती है। नर और नारी मानवरूपी रथ के ऐसे दो पहिए हैं जिनके बिना यह रथ आगे नहीं बढ़ सकता। महर्षि दयानंद ने कहा था कि जब तक देश में स्त्रियां सुरक्षित नहीं होंगी और उसे उसके गौरवपूर्ण स्थान पर प्रतिष्ठित नहीं किया जाएगा, तब तक समाज, परिवार का और राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकेगा। आज नारी विभिन्न क्षेत्रों में अपना सकारात्मक योगदान कर रही है। वह आत्मनिर्भर होकर अपने परिवार और देश का हित करने में संलग्न है। ऐसे में अगर नारी की अवहेलना होगी तो समाज और देश का अहित होगा। महिलाओं के प्रति वर्तमान दृष्टिकोण इस युग की सबसे बड़ी त्रासदी है। यह हमारे समाज की बर्बर मानसिकता का ही प्रतीक है कि महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक स्वतंत्रता का अधिकार देने की बात तो दूर उन्हें जन्म लेने से भी वंचित रखा जाता है। यह विडंबना ही है कि जिस देश में कभी नारी को गार्गी, मैत्रेयी जैसी विदुषी महिलाओं के रूप में सम्मान प्राप्त हुआ, वहीं अब कन्या के जन्म पर परिवार और समाज दुख व्याप जाता है। अच्छा हो मनुष्य जाति अपनी गरिमा पर प्रश्नचिह्न लगाने वाली ऐसी गतिविधि से बचे और कन्या के जन्म को अपने परिवार में देवी अवतरण के समान माने। हम न भूलें कि भविष्य लड़कियों का है। ऐसे में नारी का अवमूल्यन करना समूची मनुष्य जाति का अवमूल्यन करना है। मां का भी यह कर्त्तव्य है कि वह समाज के दबाव में आकर लड़की-लड़के का फर्क न करे। दोनों को समान स्नेह दें, दोनों के विकास में बराबर दिलचस्पी लें। बालिका-बालक दोनों प्यार के अधिकारी हैं। इनमें किसी भी प्रकार का भेद परमात्मा की इस सृष्टि के साथ खिलवाड़ है।

शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

दहेज:एक समाजीक कुप्रथा

क्या लड़की होना पाप है........?
लड़कियाँ क्या इंसान नहीं होती .......?
क्यों दी जा रही है उसके वजूद को चुनौती ......?
आज का सामाजिक परिवेश इन्ही सवालों से इस कदर घिर चुका है
कि वह चाहकर भी इन सवालों के घेरे से बाहर नहीं निकल पा रहाIएक बेबस माँ–बाप बस अपनी ज़िम्मेदारी के नाम पर अपनी बेटियों को गहरी खाई मे ढकेलने  से बाज नहीं आ रहे हैI भारत का पुरुष सत्तामक समाज लड़कियों के जन्म को अपशकुन मानता हैI गरीब माँ–बाप के घर मे तो लड़कियाँ किसी बोझ से कम नहीं समझी जातीI लड़कियों के प्रति इस भेदभाव के पीछे हमारे समाज मे सदियों से चली आ रही सामाजिक कुरीति दहेज–प्रथा ही तो हैI
“ये कौन सुमनों को लील रहा,
मुख किसका आज विकराल हुआ है,
चंद रुपयो कि खातिर मानव,
नर वेश मे क्यों शृंगाल हुआ है“
भला मानव के शृंगाल बनने मे कितनी देर हो सकती हैI एक तरफ हम आधुनिक युग मे जी रहे है,तो दूसरी तरफ देश कि आधी आबादी घुट घुट कर जीने को मजबूर हैI दहेज लोभी दानवो के चंगुल मे मासुम कलियाँ दम तोड़ रही हैI रोजाना दहेज के लिए बहुओ को प्रताड़ित किया जा रहा है,उन्हे ताने दिये जा रहे हैं और मौत के घाट उतारे जा रहे हैंI
“है बाजार यह अद्भुत अनोखा,
नर पशु निरीह यहाँ बिकते हैं,
विक्रेता की स्वार्थी हंसी से,
क्रेता क्रंदित हो बस चीखते हैं“
आज का युग बाजारवाद का युग है इसमे क्रय–विक्रय की परंपराए शुरू हो गयी हैIदहेज लोभी दानवो ने शादी जैसे पवित्र रिश्ते के बंधन को भी अपनी भौतिकवादी मनोवृति तथा हैवानियत से कलंकित कर दिया हैI
सामान्य अर्थ मे दहेज विवाह के समय वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष को दिया गया उपहार हैIधीरे धीरे ये उपहार मांग मे परिवर्तित हो गयी और
स्त्रियॉं के वजूद पर प्रश्नचिन्ह लगा दियेI उनका मान सम्मान काबिलियत सब कुछ दहेज पर निर्भर हो गएIआज तो दूल्हे की बोली लगती हैI जो जितना ही ऊंचे रसूख वाला है,उसकी उतनी ही बोली लगाई जाती हैI महर्षि मनु ने तो ऐसे विवाह को असुर विवाह की संज्ञा दी है जो हमारे यहाँ प्रचलित आठ विवाहों मे अधम माना जाता हैI
सम्पूर्ण समाज को सुरसा की भांति निगलने को तैयार इस कुटिल व अवैध परंपरा को समाप्त करने के लिए 1961 तथा 1985 ईसवी में दहेज निरोधी
कानून बनाए गएI लेकिन ये प्रयास नाकाफी हैI इसके लिए नवयुवकों को आगे आना होगाI
 “दहेज लेना और देना पाप है“ इस भावना को आत्मसात करना होगा और विवाह को प्रतिष्ठा या दिखाऊ समारोह न बनाकर दो दिलों दो परिवारों का मिलन बनाना होगाI भला एक होने मे छल कपट क्यों ...... एक हँसी एक रुदन क्यों .....?
“नवयुवकों आगे बढ़ो,
एक संग्राम तुझे अब लड़ना है,
दो दिलों के मिलनोत्सव पर,
मुस्कान तुझे अब लाना है,
यह समारोह कुछ और नहीं,
नयी परंपरा दो नए दिलों का,
क्यों दहेज का काम यहाँ पे?
क्यों समाज का ताना है????

नारी के प्रति मानसिकता बदलें समाज


नारी किसी भी समाज,धर्म,जाति व समुदाय का एक बहुत ही मजबूत और अहम हिस्सा है।अगर आसान शब्दों कहें में तो नारी एक आधारभूत स्तम्भहै।जो एक समाज़,श्रेष्ठ धर्म व श्रेष्ठ सामुदाय के निर्माण में सहायक होती है और पुरुष जितना भी प्रयास करते है उसके पीछे प्रोत्साहन एक नारी का ही होता है। परन्तु फिर भी जब एक नारी की दयनीय स्थिति दिखती है,जब उस पर अत्यचार होते है,मानसिक और शरीरिक शोषण होता है,कुछ घरों में एक बहिन,बहु,बेटी माँ को उचित स्थान व सम्मान प्राप्त नही होता तो नारी को देवी बताने वाली सभी बातें बेमानी और सिर्फ सी ही लगती है। आश्चर्य तो तब होता है जब आज के कुछ युवाओं की भी विचारधारा में ऐसी बीमार सोच का परिचय मिलता है, हद तो तब हो जाती है जब दोस्ती,भाई-बहिनऔर बाप-बेटी जैसे रिश्तेभी शर्मसार होते हुए और सहमे-सहमे से नज़र आते है। शायद इसकी वजह एक ऐसी मानसिकता है जिसके अंतरगत महिलाओं को बराबरी का नही बल्कि दोयम दर्जे का समझा जाता है,और उसी मानसिकता के चलते कुछ लोग महिलाओं को एक भावनाओं से भरी इंसान कि जगह उपभोग की कोई वास्तु समझते है,और कुछ लोग तो लड़कियों को बोझ मानकर कन्या भ्रूण हत्या जैसा घोर पाप कर बैठते है।परन्तु बिना नारी के हम किसी भी समाज कि कल्पना नही कर सकते।
हमें ज़रूरत है तो महिलाओं के प्रति अपनी सोच और विचारधारा बदलने की। किसी व्यक्ति को विचारधारा उसके समाज,घर-परिवार व स्कूल से ही प्राप्त होती है। यदि घरों में बच्चों को नैतिक मूल्यों और महिलाओं का सम्मान सिखाया जाये महिलाओं को शोषित होने से बचाया जा सकता है,और हमारा समाज एक बहुत बड़े कलंक से भी बच सकता है।

गुरुवार, 25 अगस्त 2016

मेरी प्यारी माँ


माँ ओ मेरी प्यारी माँ,
तु ही मेरी जिंदगी,
तु ही मेरी दुनिया,
तेरे सिवा ना कोई,
जहाँ में कोई अपना,
तु ही मेरी जन्नत है,
तु ही मेरी मंदिर,
घर से दूर हूँ,
तुझसे मिलने को हूँ अधिर,
तुझे ही मैंने भगवान माना,
तुझे ही मेरा जीवन ,
तु ही मेरी खुशी,
तु ही मेरा गम,
तु ही है ममता की मुरत,
तुझमें ही बसती है,
मेरे भगवान की सुरत,
न कोई करता प्यार,
तेरे जैसा सच्चा,
आज भी हूँ मैं वही,
तेरा छोटा सा बच्चा,
ओ माँ मेरी प्यारी माँ,
तेरी याद बहुत सताती है,
आंसू पोंछने को अकसर,
ढुड़ता हूँ तेरी आंचल,
न मिलता यहाँ तेरी आंचल,
अकसर उदास रहता हूँ,
कैसे करें गम को,
अलफाजों में बयां,
बस तेरी याद बेहिसाब आती है
माँ ओ मेरी प्यारी माँ,,,,,

मंगलवार, 23 अगस्त 2016

नदान मन


ओ री मेरा नादान मन,
क्यों रहता है तू परेशान,
होगा एक नया सबेरा,
मंजिल मिलेगी तुझको,
होगी दुनिया कदमों में तेरा,
राहों में होती मुश्किल हजार,
इतनी जल्दी बिखर जाओगी,
न होंगे सपने सकार,
अभी राह तो शुरू हुई है,
जाना है तुझे बहुत दूर,
न रुकना है,न मुड़ना है,
तुझे तो बस चलते जाना है,
याद कर तु अपनी वादा,
क्यों आया है तु इस जग में,
कायरों की तरह न बदल इरादा,
क्या हुआ जो तुझे न मिला प्यार,
इतनी छोटी सी बात से,
मायूस न होना मेरे यार,
होगी कोई न कोई जग में,
जिसे है तेरा इंतजार,
फिर तु देखना मनोरथ,
क्या होता है प्यार,

विचार बनाए जिंदगी

जी हाँ,,,,,
“विचार बनाएं जिंदगी”.जैसा सोचोगे वैसा पाओगे,यह बिलकुल सच है. परन्तु ऐसा क्यों होता है?
उत्तर बिलकुल आसन है. जब
 हम किसी भी चीज़ के बारे में सोचते हैं तो उस चीज़ की एक तस्वीर हमारे दिमाग में उभरती है. जितनी गहराई से हम किसी चीज़ के बारे में सोचेंगे उतनी ही गहरी यह तस्वीर उभरेगी. जितनी गहरी ये तस्वीर होगी उतना ही ज्यादा जल्दी और आसानी से हम उस चीज़ को प्राप्त कर लेंगे.
अर्थात जो हम सोचते हैं वही हम पाते हैं या यूँ कहें की जैसा हम सोचते हैं वही हम बन जाते हैं.ऐसा क्यों होता है? क्योंकि हम सब के साथ एक अनंत शक्ति है. जिसे हम कुदरत कह सकते हैं. या फिर भगवान भी. और यही शक्ति हमें वह सब कुछ दिलाती है जो हम सोचते
हैं.
क्योंकि जब हम किसी चीज़ के बारे में गहराई से सोचते हैं तो हमारे दिमाग से एकविशेष प्रकार की तरंगें बाहर की और प्रवाहित होती हैं. यह तरंगें अपनी समान तरंगों को अपनी और आकर्षित करती हैं. और फिर एक समय आता है जब हम उस चीज़ को प्राप्त कर लेते हैं. टोयोटा कम्पनी ने एक विशेष प्रकार की व्हीलचेयर बनाई है जो उस पर बैठने वाले व्यक्ति के सोचने से चलती है. आपको कोई बटन नहीं दबाना होता. एक और कम्पनी ने एक विशेष प्रकार का हेड-फोन (head-phone) बनाया है जिसे पहन कर आप बिना छुए केवल अपनी सोच की
शक्ति से अपना कंप्यूटर ऑपरेट कर सकते हैं.यह सिद्ध करता है कि सोचने से हमारा दिमाग एक विशेष प्रकार की तरंगें प्रेषित करता है जिनकी फ्रीक्वेंसी को वैज्ञानिक तरीके से मापा जा सकता है.
ज़रा सोचिये,ऐसा क्यों है की विश्व की कुल आय का96प्रतिशत भाग दुनिया के केवल1प्रतिशत लोग ही कमा रहे हैं. यह सब सोच का कमाल है कोई संयोग नहीं है. पुराने समय के सफल लोगों ने विचारों की इस शक्ति ( आकर्षण का  सिद्धांत)  को दुनिया की पहुँच से दूर एक राज़ बना कर रखा. अमीर
लोग और भी सफल होते गए तथा आम आदमी को कभी इसका कारण ही समझ नहीं आया. यदि हम अपने दिमाग की इस अपरिमित शक्ति को जान जाएँ और इस शक्ति की असीम उर्जा को सही दिशा में प्रवाहित करें,तो हम बड़े से बड़े कार्य आसानी से कर सकते हैं, जो चाहें उसे प्राप्त कर सकते हैं तथा जो चाहें बन सकते हैं.
जैसा की मैंने ऊपर कहा है किजब हम किसी भी चीज़ के बारे में सोचते हैं तो उस चीज़ की एक तस्वीर हमारे दिमाग में उभरती है. और जैसे जैसे हमारा ध्यान इस तस्वीर की और केन्द्रित होता जाता है,वैसे वैसे हम उस चीज़ को
 अपनी और आकर्षित करते हैं. यही तो है "आकर्षण का सिद्धांत".इस सिद्धांत को हम मानें या न मानें, जानें या ना जानें, यह लगातार अपना कार्य करता है. ठीक उसी प्रकार जैसे "गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत" हमारे मानने या ना मानने की परवाह किये बिना लगातार अपना कार्य करता है.
" आकर्षण का सिद्धांत"कोई जादू नहीं है,पर यह किसी जादू से कम भी नहीं है. हम किसी चीज़ को चाहें या ना चाहें,पर हम जो सोचते हैं वही हम पाते हैं. हमारी सोच में जो ना शब्द है, उसका इस सिद्धांत के लिए कोई
अर्थ नहीं है. यह तो बस इतना जानता है कि हम किस वस्तु के बारे में सोचते हैं. उसी वस्तु की तस्वीर हमारा दिमाग बनाता है और उसी की तरंगें प्रसारित करता है. यदि कोई हमें कहे कि आज आप टीवी मत देखना,तो सबसे पहले हमारे दिमाग में टीवी की तस्वीर उभरती है. चाहे हमें यह कहा जा रहा है की टीवी नहीं देखना. जब हम किसी चीज़ के बारे में गहराई से सोचते हैं तो हमारे दिमाग की साड़ी उर्जा उस चीज़ की छवि पर केन्द्रित हो जाती है औरधीरे धीरे, हमें उसे पाने के अनेकों रास्ते भी सूझने लगते हैं. अर्थात "विचार बनाएं जिंदगी".
अब आप यह पूछेंगे की यदि किसी भी वस्तु के बारे में सोचने भर से हम उसे प्राप्त कर सकते हैं तो फिर दुनिया भर के लोग वह क्यों नहीं पा लेते जो वे पाना चाहते हैं?उत्तर बिलकुल आसान है. असफलताओं से डरते हुए उनके बारे में सोचते हैं. अक्सर हम उन चीज़ों के बारे में अधिक सोचते हैं जो हम नहीं चाहते. हम गरीबी के बारे में,बिमारी के बारे में,या अन्य किसी नकारात्मक बात के बारे में सोचते हैं,और वही हमें मिलता है. सवाल यह नहीं है के हम किसी चीज़ को चाहते हैं या नहीं,महत्वपूर्ण यह है कि हम क्या सोचते हैं.
आपकी सोच सकारात्मक हो सकती है या नकारात्मक,अच्छी या बुरी,छोटी या बड़ी. नकारात्मक सोच के नतीज़े नकारात्मक होंगे तो सकारात्मक सोच के सकारात्मक,सोच अच्छी है तो नतीज़े भी अच्छे ही होंगे अन्यथा बुरे. सोच बड़ी होगी तभी नतीज़े भी बड़े होंगे. यह सब बातें हम अपने अगले आर्टिकल्स में डिस्कस करेंगे. तब तकअच्छा सोचिये,बड़ा सोचिये और हाँ सकारात्मक सोचियेऔर याद रखिये "विचार बनाएं जिंदगी".

रक्षाबंधन का महत्व


भाई बहन का ये पवित्र त्यौहार पुरे भारत वर्ष में बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है।बहने अपने भाई की कलाई पर राखी (रक्षा कवच )बाँधती हैं। ये कवच जहाँ भाई की तो रक्षा करता है पर बहन की रक्षा करने की भी याद दिलाता है।पर आज कल इस त्यौहार की मात्र ओपचारिकता ही रह गयी है, वैसे बाज़ारों में खूब रौनक होती है त्यौहार भी खूब धूम धाम से मनाया जाता है आजकल टी वी पर और अखबारों में हर रोज नई-नई ख़बरें आती रहती हैं किसी दहेज़ लोभी ने विवाहिता को जला दिया, कोई सरेआम किसी लड़की को सडक पर नंगा कर रहा है ,ये बेशर्म ये नहीं सोचते की ये भी किसी की बहने होगी इन बहनों का भी कोई भाई होगा, जो अपनी बहन को तुमसे भी ज्यादा प्यार करता होगा। आजकल इस राखी के पवित्र धागे में वो ताकत नहीं रही,या फिर भाइयों में इतनी ताकत नहीं रही की अपनी बहनों की रक्षा कर सके ,या समाज ही इतना गन्दा हो गया है की इतने पवित्र रिश्ते की अहमियत को भी नहीं समझ रहा है हमें इस पवित्र बंधन को दिल से मानना होगा तभी राखी बाँधने का मकसद सफल होगा,,,,,

रविवार, 14 अगस्त 2016

बेटी

बेटी है मीठी मुस्कान
बेटी कोमल भावना,
बेटी है घर की शान,
इससे ही टीका है,
दुनिया की आन,
इससे ही जुड़ा है,
माँ बाप का सम्मान,
बेटी है निर्झर की निर्मल धारा,
इनसे ही टीकी है सृष्टि सारा,
लक्ष्मी की वास हो,
बहे खुशियों की बयार,
जन्म ले बेटी जिस घर में,
पलती है वहाँ संस्कार,
बेटी है पुनम की चांदनी,
साक्षात दुर्गा रूप,
बेटी है सपनो का आधार,
सुबह की मिठी धुप,

MY MOM

When I close my eyes,
A lovely image of your,
always with me,
Yes mom you are that,
when I feel alone,
Your existence makes,
Like a crowd of people,
Yes mom you are that,
When am in struggle,
Your lovely smile,
Gives me a reason to alive,
Yes mom you are that

शनिवार, 13 अगस्त 2016

स्वतंत्रता दिवस और नारी सशक्तिकरण के मायने

सर्वप्रथम आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ,,,
आज मैं क्या हर हिन्दुस्तानी  स्वंत्रता दिवस कि सालगिरह मना रहा है. इसमें मैं भी शामिल हूँ. लेकिन क्या हम सही मायने में आजाद या स्वंत्र है,, क्या हमें बात रखने या बोलने का हक है? हमें भी अपने देश में ,समाज में कुछ करने या कुछ बोलने का हक है,,,आज मैं इतिहास को नहीं दोहराना चाहता हूँ,क्योकि जो बित गया,,बित गया,,आज हम वर्तमान परिपेक्ष्य में महिलाओ की वास्तविक स्वतंत्रता के बारे में अपना विचार रखना चाहूँगा,,
संविधान में जो भी कुछ लिखा है हर कोई जानता है ये कौन बता सकता है? क्या हम सबको अपने मूलभूत अधिकार या कर्तव्य का ज्ञान है ? हमें कौन से अधिकार मिले हैं? हम में से कितने लोग है जिनको पता है?? बहुत ही कम लोग है  जिनको पता है,,,क्या कभी हमें इसका ज्ञान होगा ? या हमें कौन जानकारी देगा.?
कोई नहीं है, न तो इसको सरकार बता सकता है , न सरकार का कोई नुमाइंदा . न ही कोई नेता जिसे हमें चुन कर अपने देश और समाज के विकास के विधान सभा और संसद भेजते हैं.
हमारे देश को आजादी मिले कितने साल हो गए??? 69 साल,,,,  लेकिन हम उस समय से भी बहुत जयादा पिछड़ गए है. जिस तेजी से और सभी चीजों का विकास हुआ उतना हमारे देश के नागरिको स्पेशली महिलाओं का विकास नहीं हुआ,,,,
आज आधी आबादी ऐसे जीती है कि पता नहीं कल दिन कैसा होगा ? क्या होगा ? कोई ऐसा है जो यह नहीं सोचता है?? . शायद नहीं,,,,आज हमारे देश में इतना भय का माहोल है. जितना कि कभी सोचा भी नहीं होगा,,
आज विज्ञापनों के माध्यम से नारी देह का अश्लील प्रदर्शन हो रहा हैं। यही कारण है कि महिलाओं के साथ दुष्कर्म की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही हैं। आये दिन दुराचार, व्याभिचार और छेड़छाड़ की घटनाएं होती रहती हैं हाल फिलहाल  बुलंदशहर की घटना ने सबको झकझोर कर रख दिया,,महिलाएं असुरक्षित हो रही हैं इसके लिए महिला जागरूकता के साथ ही समाज और सरकार के द्वारा प्रभावी प्रयास करना आवश्यक हैं,,,,,,
परिदृश्य बदल रहा है, महिलाओं की भागीदारी सभी क्षेत्रों में उल्लेखनीय रूप से बढ़ रही है Women Empowerment हो रहा है,
 ये कुछ चुनिन्दा पंक्तियां हैं जो यदा कदा अखबारों में, टीवी न्यूज़ चेनल में, और नेताओं के मुँह से सुनी जाती रही है,, अपने क्षेत्र में खास उपलब्धियां हासिल करने वाली कुछ महिलाओं का उदाहरण देकर हम महिलाओं की उन्नती को दर्शाते है,, पर अगर आप ध्यान दे तो कुछ अदभुत करने वाली महिलाएं तो हर काल में रही है सीता से लेकर द्रौपदी, रज़िया सुल्तान से लेकर रानी दुर्गावति, रानी लक्ष्मीबाई से लेकर इंदिरा गांधी एवं किरण बेदी एवं सानिया मिर्जा,,,,परन्तु महिलाओं की स्थिति में कितना परिवर्तन आया? और आम महिलाओं ने परिवर्तन को किस तरह से देखा?
दरअसल असल परिवर्तन तो आना चाहिए आम महिलाओं के जीवन में,,,न कि किसी खास में,,,,जरुरत है महिलाओं की सोच में परिवर्तन लाने की,,, उन्हें बदलने की,,,आम महिलाओ के जीवन में परिवर्तन, उनकी स्थिति में, उनकी सोच में परिवर्तन,,,यही तो है असली empowerment,,,,
महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे है,शहर असुरक्षित होते जा रहे है,कुछ चुनिंदा घटनाओ एवं कुछ चुनिंदा लोगों की वजह से कई सारी अन्य महिलाओं एवं लड़कियों के बाहर निकलने के दरवाजे बंद हो जाते है, जरुरत है बंद दरवाज़ों को खोलने की, रौशनी को अंदर आने देने की,, प्रकाश में अपना प्रतिबिम्ब देखने की,,, उसे सुधारने की,, निहारने की,,,निखारने की,,,,अपनी अधिकार को पहचानने की,,,
इसी कड़ी में एक और दरवाज़ा है आत्म निर्भरता,,,या कहें आर्थिक आत्म निर्भरता,,,
महिलाओं को बचपन से सिखाया जाता है की खाना बनाना जरुरी है,,जरुरत है की सिखाया जाये की कमाना भी जरुरी है,, आर्थिक रूप से सक्षम होना भी जरुरी है,,,परिवार के लिये नहीं वरन अपने लिए,, पैसे से खुशियाँ नहीं आती, पर बहुत कुछ आता है जो साथ खुशियाँ लाता है,,,
अगर शिक्षा में कुछ अंश जोड़ें जाये जो आपको किताबी ज्ञान के साथ व्यवहारिक ज्ञान भी दे,,, आपके कौशल को उपयुक्त बनाये,, आपको इस लायक बनाये की आप अपना खर्च तो वहन कर ही सके,,, तभी शिक्षा के मायने सार्थक होंगे,,,
जरुरी नहीं कि हर कमाने वाली लड़की डाक्टर या शिक्षिका हो,,, वे खाना बना सकती है,,, पार्लर चला सकती है,,, कपड़े सी सकती है,,, उन्हें ये सब आता है,,, वे ये सब करती है,, पर सिर्फ घर में,,,,उनके इसी हुनर को घर के बाहर लाना है,,,आगे बढ़ाना है,,,,,
ये एक सोच है,,,ज़रुरत है इस सोच को आगे बढ़ाने की,,,उनके कोशल को उनकी जीवन रेखा बनाने की,,ताकि समय आने पर वे व्यवसाय कर सके,, अपना परिवार चला सके,,, ये उन्हें गति देगा,, दिशा देगा,,, आत्माभिमान देगा,, आत्मविश्वाश देगा,,,वे दबेगी नहीं,, डरेगी नहीं,, ये एक खुशहाल भविष्य की कामना है,,,, अमल करे,,,, अभी करे,,,
जय हिंद,,,,

बुधवार, 10 अगस्त 2016

दहेज

धन दौलत की लालच में तुम,
क्यों अपनी इंसानियत भूल जाते हो,
जला देते हो दहेज की ज्वला में तुम,
क्यों हैवानियत पर उतारु हो जाते हो,
क्या बीतती होगी उस बुढ़े बाप पर,
जिसने खोई अपनी बेटी को,
सुधर जाओ ऐ लालची इंसान,
वरना भूल जाओ अपने अस्तित्व को,
सारे रिश्ते नाते तोड़,
तुझको अपनाती है,
फिर क्यों ऐ नदान इंसान,
उसे ही जीवन भर रुलाती है,
याद कर तू उस,
बाप की कुर्बानी को,
जिसने दान में दे दी तुझे,
अपनी अनमोल खजाने को,
आ ले प्रण मिलकर सब,
न दहेज लेंगे न देंगे कभी,
फिर देखना मनोरथ,
आर्दश समाज बनेगा अब,,,,,

औरत

अनूठा है खेल तेरी
किस्मत का औरत,
आंचल में आँसू तू
अस्मत की औरत,
सजाती है आँगन
सितारों की दुनियां,
दुनियां में अपनी
विरानी है औरत।
बसा करके बसी न
हँसा करके हँसी है,
जिन्दगी का अनूठा
पहलू बनी है,
जिसने भी उछाला
उछली है औरत,
ठहरी तो ठहरा
कोई पहलू बनी है।
औरत न खोले जुबां
न खोले न सही मगर,
न खोले आबरु की
किताब तो ठीक है,
ढका रहता है घूंघट में
महाभारत का अंत,
न उठाए पर्दा,
न कहे गैर से
इतनी है बात तो ठीक है।
तराजू के पालने में
लटकी है औरत,
मंजिल से अपनी ही
भटकी है औरत,
रची है इसने ये
ब्रह्मा की धरती,
धरती पे अपनी
सिसकती है औरत।
हमसे न पूछ
‘वो’ किधर जा रही थी,
जिधर न थी मंजिल
चली जा रही थी,
किसी तरह पूछ लिया
रोक करके उसे,
इंसा पे उंगली उठाए जा रही थी।
-मनोरथ

मेरी प्यारी माँ

माँ ओ मेरी प्यारी माँ,
तु ही मेरी जिंदगी,
तु ही मेरी दुनिया,
तेरे सिवा ना कोई,
जहाँ में कोई अपना,
तु ही मेरी जन्नत है,
तु ही मेरी मंदिर,
घर से दूर हूँ,
तुझसे मिलने को हूँ अधिर,
तुझे ही मैंने भगवान माना,
तुझे ही मेरा जीवन ,
तु ही मेरी खुशी,
तु ही मेरा गम,
तु ही है ममता की मुरत,
तुझमें ही बसती है,
मेरे भगवान की सुरत,
न कोई करता प्यार,
तेरे जैसा सच्चा,
आज भी हूँ मैं वही,
तेरा छोटा सा बच्चा,
ओ माँ मेरी प्यारी माँ,
तेरी याद बहुत सताती है,
आंसू पोंछने को अकसर,
ढुड़ता हूँ तेरी आंचल,
न मिलता यहाँ तेरी आंचल,
अकसर उदास रहता हूँ,
कैसे करें गम को,
अलफाजों में बयां,
बस तेरी याद बेहिसाब आती है
माँ ओ मेरी प्यारी माँ,,,,,

मन की बातें

निशि की चिर प्रहर में,
हृदय की बात रे मन,
क्यों दिखाता है मुझे,
अधूरे ख्वाबों का स्वप्न,
न पूरे होंगे वो ख्वाब,
किस्मत की बात रे मन,
बिखरे हुए हैं मेरे शब्द,
नहीं लिख पाऊंगा अब,
कलम भी हो गया है स्तब्ध,
बिखरे शब्दों की पीड़ा रे मन,
हर तरफ लगा है छाने अंधेरा,
उजाले की न मिली ठिकाना,
जिंदगी की कशमकश में,
ये परिंदा ढूंढता है अपना आशियाना,
टुटे ख्वाबों की पीड़ा रे मन,
तम की अथह गहराई में,
माँ की विरह के ज्वला में,
जलता मेरा ये तन,
विरह की ज्वला रे मन,,
न कबूल हुआ प्रियतमा को,
नि:स्वार्थ,नि:शब्द प्रेम की,
प्रेम की उलझन में फंसी,
ये नादान दिल रे मन,

यादें

वर्षों से रहे साथ जिनके,
वे सब बिछड़ जाऐंगे,
आज के बाद भी क्या,
वे दोस्त वापस आऐंगे?
कोई इधर होगा,कोई उधर होगा,
सब अलग अलग हो जाऐंगे,
मंजिलें होंगी कई पास,
पर दोस्तों से दूरी पायेंगे,
चाहे घर हो या अॅफिस हो,
ऐसे दोस्त वहाँ भी न मिल पायेंगे,
जहाँ प्यार और वो यादें हो,
बस वही पल याद आयेंगे,
वो हंसी ठिठोली,वो ट्यूशन की मस्तीयां,
न जाने कहाँ खो जायेंगे,
अब भी क्या वो पल मुझे,
कभी वापस मिल पायेंगे?
डी•के• सर के डांट के वो दिन,
भले ही तब न रह जायेंगे,
लेकिन पीछे सफलता के दिन,
जरुर दिखाई दे जायेंगे,
भले ही बिछड़ जायेंगे सभी,
लेकिन साथ बिताये एक एक पल,
जीवन भर याद आयेंगे,
इन्हीं खट्टी मिट्ठी यादों को संजोये,
एक दिन गहरी नींद में सो जायेंगे,,,,,,

मानसिक गुलामी से बचें

आज जब हम अपने जीने के तौर तरीकों को देखता हूँ तो बड़ा अजीब लगता है आज जिंदगी फास्ट एन्ड फुरियस की तरह सरपट दौड़ी जा रही है जिसमें हमारा एक मात्र लक्ष्य होता है जीतना,,,यहाँ जिंदगी की रेस में हर कोई जीतना चहता है हारना कोई नहीं,,,,,हम दूसरों से हमेशा आगे रहना चाहते है,,,दरसल हमलोग के दिमाग में ये कुट कुट कर भर दिया जाता है कि लाइफ इज रेस बस भागो,भागो पर जाना कहाँ है ये किसी को पता नहीं है,,,,
स्कूल हो या कॅालेज हमें बस टॅाप करना होता है हम नोलेज के पीछे नहीं बल्कि नम्बरों के पीछे भाग रहे है यदि किसी तरह हमारा नम्बर कम आ जाता है तो हम कुण्ठा ग्रस्त हो जाते है तथा अपना इनोवेटिभ दिमाग खो देते है,,,परिणाम बहुत ही घातक,,,,,दरसल ये शिक्षा व्यवस्था का दोष नहीं है ये हमारे उस सोच का दोष है जो हमें सिर्फ और सिर्फ जीतने को उसकाती है,,,,हम भुल जाते है कि हार कर ही जीता जाता है,हार से जो हमें सीख मिलती है वो कहीं नहीं मिलती,,,,,
सिंह एक ताकतवर जानवर है फिर भी उसे महज एक चैन से बांध कर रखा जाता है क्योंकि उसे अहसास नहीं होता है कि उसमें इतनी क्षमता है,,,,सेम केस हमलोगों के साथ हो रहा है हम लोग कभी अपनी क्षमता को अहसास ही नहीं कर पाते है कि हम क्या कर सकते है जिस दिन ये अहसास हो गया न दुनिया का कोई भी कार्य असंभव नहीं होगा,,,,
हमें मानसिक गुलामी से मुक्त होना होगा हमें इस सोच को अलविदा कहना होगा कि फलना इन्टलीजेंट है इसलिए ज्यादा नम्बर लाया हम कमजोर है इसलिए कम नम्बर आया,,,,,ऐसी तर्क विहीन एक्सक्युज से बचना होगा,,,,,हमें अपने अंदर की ताकत को पहचाना होगा,,,,जिस दिन पहचान लिए न बस उसी दिन समझो दुनिया हमारी मुट्ठी में,,,,,,,,,,,,,,,
आपलोगों के स्वर्णिम भविष्य की कामना के साथ आपका दोस्त मनोरथ,,,,,,,
माँ तेरी याद आती है,
बेहिसाब बेसबब आती है,
आ गया हूँ तेरी आंचल छोड़,
एक अंजान शहर में,
खुशियों की बहार छोड़,
गम के समंदर में,
तेरी वो प्यारी सुरत,
हमेशा याद आती है,
फंस गया हूँ जिंदगीं की दलदल में,
ढुंडता फिरता हूँ खुद को,
हजारों की भीड़ में,
नहीं है कोई गलती बताने वाला,
तेरी वो मार्गदर्शन याद आता है,
बहुत स्वार्थों है ये दुनिया वाले,
तेरी वो निस्वार्थ प्यार याद आता है,
माँ तेरी बहुत याद आती है,,,,,