शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

नारी के प्रति मानसिकता बदलें समाज


नारी किसी भी समाज,धर्म,जाति व समुदाय का एक बहुत ही मजबूत और अहम हिस्सा है।अगर आसान शब्दों कहें में तो नारी एक आधारभूत स्तम्भहै।जो एक समाज़,श्रेष्ठ धर्म व श्रेष्ठ सामुदाय के निर्माण में सहायक होती है और पुरुष जितना भी प्रयास करते है उसके पीछे प्रोत्साहन एक नारी का ही होता है। परन्तु फिर भी जब एक नारी की दयनीय स्थिति दिखती है,जब उस पर अत्यचार होते है,मानसिक और शरीरिक शोषण होता है,कुछ घरों में एक बहिन,बहु,बेटी माँ को उचित स्थान व सम्मान प्राप्त नही होता तो नारी को देवी बताने वाली सभी बातें बेमानी और सिर्फ सी ही लगती है। आश्चर्य तो तब होता है जब आज के कुछ युवाओं की भी विचारधारा में ऐसी बीमार सोच का परिचय मिलता है, हद तो तब हो जाती है जब दोस्ती,भाई-बहिनऔर बाप-बेटी जैसे रिश्तेभी शर्मसार होते हुए और सहमे-सहमे से नज़र आते है। शायद इसकी वजह एक ऐसी मानसिकता है जिसके अंतरगत महिलाओं को बराबरी का नही बल्कि दोयम दर्जे का समझा जाता है,और उसी मानसिकता के चलते कुछ लोग महिलाओं को एक भावनाओं से भरी इंसान कि जगह उपभोग की कोई वास्तु समझते है,और कुछ लोग तो लड़कियों को बोझ मानकर कन्या भ्रूण हत्या जैसा घोर पाप कर बैठते है।परन्तु बिना नारी के हम किसी भी समाज कि कल्पना नही कर सकते।
हमें ज़रूरत है तो महिलाओं के प्रति अपनी सोच और विचारधारा बदलने की। किसी व्यक्ति को विचारधारा उसके समाज,घर-परिवार व स्कूल से ही प्राप्त होती है। यदि घरों में बच्चों को नैतिक मूल्यों और महिलाओं का सम्मान सिखाया जाये महिलाओं को शोषित होने से बचाया जा सकता है,और हमारा समाज एक बहुत बड़े कलंक से भी बच सकता है।

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