बुधवार, 10 अगस्त 2016

दहेज

धन दौलत की लालच में तुम,
क्यों अपनी इंसानियत भूल जाते हो,
जला देते हो दहेज की ज्वला में तुम,
क्यों हैवानियत पर उतारु हो जाते हो,
क्या बीतती होगी उस बुढ़े बाप पर,
जिसने खोई अपनी बेटी को,
सुधर जाओ ऐ लालची इंसान,
वरना भूल जाओ अपने अस्तित्व को,
सारे रिश्ते नाते तोड़,
तुझको अपनाती है,
फिर क्यों ऐ नदान इंसान,
उसे ही जीवन भर रुलाती है,
याद कर तू उस,
बाप की कुर्बानी को,
जिसने दान में दे दी तुझे,
अपनी अनमोल खजाने को,
आ ले प्रण मिलकर सब,
न दहेज लेंगे न देंगे कभी,
फिर देखना मनोरथ,
आर्दश समाज बनेगा अब,,,,,

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