बुधवार, 10 अगस्त 2016

मानसिक गुलामी से बचें

आज जब हम अपने जीने के तौर तरीकों को देखता हूँ तो बड़ा अजीब लगता है आज जिंदगी फास्ट एन्ड फुरियस की तरह सरपट दौड़ी जा रही है जिसमें हमारा एक मात्र लक्ष्य होता है जीतना,,,यहाँ जिंदगी की रेस में हर कोई जीतना चहता है हारना कोई नहीं,,,,,हम दूसरों से हमेशा आगे रहना चाहते है,,,दरसल हमलोग के दिमाग में ये कुट कुट कर भर दिया जाता है कि लाइफ इज रेस बस भागो,भागो पर जाना कहाँ है ये किसी को पता नहीं है,,,,
स्कूल हो या कॅालेज हमें बस टॅाप करना होता है हम नोलेज के पीछे नहीं बल्कि नम्बरों के पीछे भाग रहे है यदि किसी तरह हमारा नम्बर कम आ जाता है तो हम कुण्ठा ग्रस्त हो जाते है तथा अपना इनोवेटिभ दिमाग खो देते है,,,परिणाम बहुत ही घातक,,,,,दरसल ये शिक्षा व्यवस्था का दोष नहीं है ये हमारे उस सोच का दोष है जो हमें सिर्फ और सिर्फ जीतने को उसकाती है,,,,हम भुल जाते है कि हार कर ही जीता जाता है,हार से जो हमें सीख मिलती है वो कहीं नहीं मिलती,,,,,
सिंह एक ताकतवर जानवर है फिर भी उसे महज एक चैन से बांध कर रखा जाता है क्योंकि उसे अहसास नहीं होता है कि उसमें इतनी क्षमता है,,,,सेम केस हमलोगों के साथ हो रहा है हम लोग कभी अपनी क्षमता को अहसास ही नहीं कर पाते है कि हम क्या कर सकते है जिस दिन ये अहसास हो गया न दुनिया का कोई भी कार्य असंभव नहीं होगा,,,,
हमें मानसिक गुलामी से मुक्त होना होगा हमें इस सोच को अलविदा कहना होगा कि फलना इन्टलीजेंट है इसलिए ज्यादा नम्बर लाया हम कमजोर है इसलिए कम नम्बर आया,,,,,ऐसी तर्क विहीन एक्सक्युज से बचना होगा,,,,,हमें अपने अंदर की ताकत को पहचाना होगा,,,,जिस दिन पहचान लिए न बस उसी दिन समझो दुनिया हमारी मुट्ठी में,,,,,,,,,,,,,,,
आपलोगों के स्वर्णिम भविष्य की कामना के साथ आपका दोस्त मनोरथ,,,,,,,

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