शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

उलझन

जब भी होता हूँ मैं तन्हा,
सोचता हूँ अकसर,
कौन हूँ मैं? क्या है मेरा अस्तित्व?
तभी विचार आता है मन में,
मैं उस छाया की तरह हूँ,
जो अंधेरे में गायब हो जाता है,
मैं उस पंजरे में बंद परिंदा जैसा हूँ,
जो कैद में रह कर भी,
आसमान में उड़ने की सपना देखता है,
तभी ख्याल आता है मन में,
मैं उस प्यासे पथिक की तरह हूँ,
जो अपनी प्यास बुझाने के लिए,
मृगतृष्णा में उलझ कर रह जाता है,
तभी आती है एक आवाज,
नहीं, तू छाया नहीं तू तो वो अक्स है,
जो अंधेरे में भी जुगनु जैसा चमकता है,
तू बंद पिंजरे का परिंदा नहीं,
तू तो वो बाज है,
जो खुले आसमान में उड़ने का हुनर रखता है,

शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

मेरी मूर्खता!


सोचा लिखूँ माँ पर एक कविता,
समेट लूं चंद शब्दों में माँ को,
कैद कर लूं अपनी डायरी के पन्नों में,
दिखा दूं माँ को भी अपनी विद्वानीता,
तभी मन हंसा मेरी मूर्खता पर,
कैसे समेटागा तु उस माँ को,
अपनी इन चंद शब्दों से,
जो है ममता की निर्झर सरीता,
जिसकी न शुरू न अंत, जो है अनंत,
कैसे करेगा तु महज कुछ लफ्जों में,
उस ममतामयी माँ  की दर्द को बयां,
जो नौ महीने तुझे अपनी गर्भ में पाला,
भुल गया क्या माँ ही तुझे संसार दिखाया,
सारी दर्द सहकर तुझे इंसान बनाया,
रात भर जागकर लोरी सुनाया,
न कर सकेगा तु माँ की ममता को,
महज कुछ लफ्जों में कैद,
क्योंकि माँ की ममता है आजाद परिंदा,
जो स्वच्छंद विचरण करती खुले आसमान पर,
और प्यार बरसती अपनी बच्चों पर,
क्यों वर्णन करने चला है तु माँ को,
मत कर तु इतनी बड़ी भूल,
खो देगा तु अपनी अस्तित्व,
खत्म हो जायेगी तेरी कुल,

बुधवार, 7 सितंबर 2016

सपनें कभी अपने नहीं होते!


सपने खामोशी से टूटते है,
कभी सुनी है कोई आवाज़?
सपने मुरदों सी होती है,
कभी देखी है कोई हलचल?
टुट कर बिखर जाती है सपने,
जब मजबूरी हावी होने लगती है,
हम भी बुने थे कुछ सपने,
कुछ ख्वाब रखे थे पाले,
लेकिन उम्मीदों के बोझ तले,
धीरे धीरे बिखरने लगे सपने,
और मजबूरियां लगने लगी अपने,
हम भी रोज रात को सुनहरी सपने बुनते  है,
खामोश रहकर नई उम्मीदें चुनते है,
लेकिन छोटी छोटी मजबूरियां लगती है रोने,
और बिखर जाती है सपने,
तब ठहर सा जाता है ये लम्हा,
आँखों के सामने अंधेरा लगती है छाने,
लगने लगती है बेकार ये जिंदगी,
जब टुट जाते है सपने,
सपने आखिर सपने होते है,
ये कब अपने होते है,
टुट जाने देते है सपनों को,
और समेट लेते है अपनों को(मजबूरीयों को)

गुरुवार, 1 सितंबर 2016

ऊर्जा संरक्षण


सुनो ध्यान से दुनिया वालों,
अभी समय है न बिगड़ा कुछ,
करके ऊर्जा का संरक्षण  तुम,
आने वाली पीढ़ी को बचा लो।
ऊर्जा है जीवन का आधार,
ऊर्जा की बरबादी करके,
क्यों कर रहे हो तुम,
अपनी ही आने वाली वंश का संहार।
तपती धरती करे पुकार,
मत करो फिजूल खर्चा ऊर्जा की,
ऊर्जा बिन सुना है संसार।
क्या दोगे विरासत में तुम,
कभी इस बात पे किया है गौर,
जब खत्म हो जायेंगे कोयला,
ऊर्जा बिन मचाओगे शोर।
ऊर्जा संरक्षण का न कोई और विकल्प,
ऊर्जा के सही उपयोग से ही,
देश का होगा कायाकल्प।
आओ सब मिलकर प्रण उठाए,
न करेंगे न करने देंगे ऊर्जा की बरबादी,
सुनहरा सुरक्षित भविष्य के लिए,
ऊर्जा का संरक्षण को अपनाएँ।