बुधवार, 10 अगस्त 2016

मन की बातें

निशि की चिर प्रहर में,
हृदय की बात रे मन,
क्यों दिखाता है मुझे,
अधूरे ख्वाबों का स्वप्न,
न पूरे होंगे वो ख्वाब,
किस्मत की बात रे मन,
बिखरे हुए हैं मेरे शब्द,
नहीं लिख पाऊंगा अब,
कलम भी हो गया है स्तब्ध,
बिखरे शब्दों की पीड़ा रे मन,
हर तरफ लगा है छाने अंधेरा,
उजाले की न मिली ठिकाना,
जिंदगी की कशमकश में,
ये परिंदा ढूंढता है अपना आशियाना,
टुटे ख्वाबों की पीड़ा रे मन,
तम की अथह गहराई में,
माँ की विरह के ज्वला में,
जलता मेरा ये तन,
विरह की ज्वला रे मन,,
न कबूल हुआ प्रियतमा को,
नि:स्वार्थ,नि:शब्द प्रेम की,
प्रेम की उलझन में फंसी,
ये नादान दिल रे मन,

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