शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

दहेज:एक समाजीक कुप्रथा

क्या लड़की होना पाप है........?
लड़कियाँ क्या इंसान नहीं होती .......?
क्यों दी जा रही है उसके वजूद को चुनौती ......?
आज का सामाजिक परिवेश इन्ही सवालों से इस कदर घिर चुका है
कि वह चाहकर भी इन सवालों के घेरे से बाहर नहीं निकल पा रहाIएक बेबस माँ–बाप बस अपनी ज़िम्मेदारी के नाम पर अपनी बेटियों को गहरी खाई मे ढकेलने  से बाज नहीं आ रहे हैI भारत का पुरुष सत्तामक समाज लड़कियों के जन्म को अपशकुन मानता हैI गरीब माँ–बाप के घर मे तो लड़कियाँ किसी बोझ से कम नहीं समझी जातीI लड़कियों के प्रति इस भेदभाव के पीछे हमारे समाज मे सदियों से चली आ रही सामाजिक कुरीति दहेज–प्रथा ही तो हैI
“ये कौन सुमनों को लील रहा,
मुख किसका आज विकराल हुआ है,
चंद रुपयो कि खातिर मानव,
नर वेश मे क्यों शृंगाल हुआ है“
भला मानव के शृंगाल बनने मे कितनी देर हो सकती हैI एक तरफ हम आधुनिक युग मे जी रहे है,तो दूसरी तरफ देश कि आधी आबादी घुट घुट कर जीने को मजबूर हैI दहेज लोभी दानवो के चंगुल मे मासुम कलियाँ दम तोड़ रही हैI रोजाना दहेज के लिए बहुओ को प्रताड़ित किया जा रहा है,उन्हे ताने दिये जा रहे हैं और मौत के घाट उतारे जा रहे हैंI
“है बाजार यह अद्भुत अनोखा,
नर पशु निरीह यहाँ बिकते हैं,
विक्रेता की स्वार्थी हंसी से,
क्रेता क्रंदित हो बस चीखते हैं“
आज का युग बाजारवाद का युग है इसमे क्रय–विक्रय की परंपराए शुरू हो गयी हैIदहेज लोभी दानवो ने शादी जैसे पवित्र रिश्ते के बंधन को भी अपनी भौतिकवादी मनोवृति तथा हैवानियत से कलंकित कर दिया हैI
सामान्य अर्थ मे दहेज विवाह के समय वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष को दिया गया उपहार हैIधीरे धीरे ये उपहार मांग मे परिवर्तित हो गयी और
स्त्रियॉं के वजूद पर प्रश्नचिन्ह लगा दियेI उनका मान सम्मान काबिलियत सब कुछ दहेज पर निर्भर हो गएIआज तो दूल्हे की बोली लगती हैI जो जितना ही ऊंचे रसूख वाला है,उसकी उतनी ही बोली लगाई जाती हैI महर्षि मनु ने तो ऐसे विवाह को असुर विवाह की संज्ञा दी है जो हमारे यहाँ प्रचलित आठ विवाहों मे अधम माना जाता हैI
सम्पूर्ण समाज को सुरसा की भांति निगलने को तैयार इस कुटिल व अवैध परंपरा को समाप्त करने के लिए 1961 तथा 1985 ईसवी में दहेज निरोधी
कानून बनाए गएI लेकिन ये प्रयास नाकाफी हैI इसके लिए नवयुवकों को आगे आना होगाI
 “दहेज लेना और देना पाप है“ इस भावना को आत्मसात करना होगा और विवाह को प्रतिष्ठा या दिखाऊ समारोह न बनाकर दो दिलों दो परिवारों का मिलन बनाना होगाI भला एक होने मे छल कपट क्यों ...... एक हँसी एक रुदन क्यों .....?
“नवयुवकों आगे बढ़ो,
एक संग्राम तुझे अब लड़ना है,
दो दिलों के मिलनोत्सव पर,
मुस्कान तुझे अब लाना है,
यह समारोह कुछ और नहीं,
नयी परंपरा दो नए दिलों का,
क्यों दहेज का काम यहाँ पे?
क्यों समाज का ताना है????

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